पृष्ठ:मुद्राराक्षस.djvu/६५

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न बाँधेगा । वह कुपित ब्राह्मण यह कहता हुश्रा वहाँ से निकला कि 'जो राजा होना चाहता हो वह मेरे पीछे आवे।' चंद्रगुप्त उसी समय अपने पाठ मित्रों के साथ उठकर उसके साथ चला गया । वे वहुत जल्द गंगाजी पार उतरे और नेपाल के राजा पर्वतेश्वर के पास गए, जिसने इनका अच्छा स्वागत किया। इन लोगों ने उसकी प्रार्थना की कि वह उनकी धन और सेना से सहायता करे । चंद्रगुप्त ने साथही प्रतिज्ञा की कि सफलता प्राप्त होने पर वइ प्रासी का श्राधा राज्य उसे देगा। पर्वतेश्वर ने कहा कि वह इतनी सेना एकत्र नहीं कर सकता कि ऐसे बलशाली राज्य पर अधिकार कर सके पर उसकी यवनो. (ग्रीक), शकों, काम्बोजों (गजनी के) और किरातो ( पूर्वी नेपाल के पहाड़ी ) से मित्रता है और वह उनकी सहायता ले सकता है। उग्रधन्वा ने चंद्रगुप्त के इस व्यवहार पर क्रोधित होकर उसके भाइयों को मरवा डाला। पर्वतेश्वर ने बहुत बड़ी सेना तैयार की और अपने भाई वैरोचक तथा पुत्र मलयकेतु को साथ लिया। मित्र राजे जल्दी प्रासी की राजधानी के पास पहुंचे और वहाँ का राजा भो सेना सहित युद्धार्थ बाइर निकला । युद्ध हुश्रा जिसमें उग्रधन्वा परास्त हुआ और बहुत मारकाट के अनंतर स्वय भी मारा गया। नगर घिर गया और वहाँ के दुर्गाध्यक्ष सर्वार्थ- सिद्धि ऐसे प्रबल शत्रु से नगर की रक्षा को असम्भव समझ कर विंध्य पर्वत में चले गये तथा साधु हो गए । गक्षस पर्वतेश्वर से मिल गया । ___चंद्रगुप्त ने गद्दी मिलने पर सुमाल्यादिकों का नाश किया और मित्र राजों को उनके सहायतार्थ अच्छा पुरस्कार देकर विदा किया। यवनों को अपने पास रख लिया और पर्वतेश्वर को प्रासी का अर्द्ध राज्य देने से नाही कर दिया। वह बलात् अपने स्वस्व पर अधिकार करने में अपने को अयोग्य समझ कर बदला लेने की इच्छा सहित स्वदेश लौट गया। राक्षस की राय से पर्वतेश्वर ने एक घातक चंद्रगुप्त को मारने के लिए नियत किया पर विष्णुगुप्त ने शंका कर केवल उस षड़यंत्र को निष्फल हो न किया वरन - ग्मीरियल मजे० जि० १६ में यह किरात वंश का लिखा गया है।