पृष्ठ:मुद्राराक्षस.djvu/७८

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प्रथम अंक चाणक्य-कहो, जिस काम को गए थे उसका क्या किया ? चंद्रगुप्त को लोग चाहते है कि नहीं। ___ दूत-महाराज! मापने पहले ही से ऐसा प्रबंध किया है कि १४० कोई चंद्रगुप्त से विराग न करे इस हेतु सारी प्रजा महाराज चंद्रगुप्त में अनुरक्त है, पर राक्षस मंत्री के हद मित्र तीन ऐसे हैं जो चंद्रगुप्त की वृद्धि नहीं सह सकते। चाणक्य-(क्रोध से ) अरे! कह कौन अपना जीवन नहीं सह सकते, उनक नाम तू जानता है ? . ___ दूत--जे नाम न जानता तो आपके सामने क्यों कर निवेदन करता। चाणक्य-मैं सुना चाहता हूँ कि उनके क्या नाम हैं। दूत-महाराज मुनिये। पहले तो शत्रु का पक्षपात करनेवाला क्षपणक है। १५० चाणक्य-(हर्ष से आप ही आप ) हमारे शत्रुओं का पक्षपाती क्षपणक है । (प्रकाश ) उसका नाम क्या है ? दूत-जीवसिद्धि नाम है। चाणक्य--तूनें कैसे जाना कि क्षपणक मेरे शत्रुओं का पक्षपाती है ? दूत-क्योंकि उसने राक्षस मत्री के कहने से देव पर्वतेश्वर पर विष कन्या का प्रयोग किया , चाणक्य-श्राप ही आप ) जीवसिद्धि तो हमाग गुप्तदूत है। (प्रकाश) हाँ, और कौन है ? दूत-महाराज! दूसरा राक्षस मंत्री का प्यारा सखा शकट १६० दास कायथ है। चाणक्य-हंसकर आप ही भाप ) कायथ कोई बड़ी बात नहीं है तो भी क्षुद्र शत्रु की भी उपेक्षा नहीं करनी चाहिए, इसी हेतु तो मैंने सिद्धार्थ क को उसका मित्र बनाकर उसके पास रक्खा है। (प्रकाश) हाँ, तीसरा कौन है ?