पृष्ठ:मुद्राराक्षस.djvu/८२

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प्रथम अंक ' : चाणक्य-सुनो, पहले जहाँ सूली दी जाती है वहाँ जाकर रोष. पूर्वक फाँसी देने वालों को दहिनी आँख दबाकर सममा देना और जब वे तेरी बात समझ कर डर से इधर उधर भाग जायँ तब तुम शकटदास को लेकर राक्ष मंत्री के पास चले जाना। वह अपने मित्र के प्राण बचाने से तुम पर बड़ा प्रसन्न होगा और तुम्हें पारि- तोषिक देगा, तुम उसको लेकर कुछ दिनों तक राक्षस ही के पास रहना और जब और भी लोग पहुँच जाय तब यह काम करना । ( कान में समाचार कहता है) मि.-जो आज्ञा महाराज ! चाणक्य-शारंगरव ! शारंगरव। शिष्य-(माकर ) आज्ञा गुरुजी ! चाणक्य-कालपाशिक और दंडपाशिक से यह कह दो कि चंद्रगुप्त आज्ञा करता है कि जीवसिद्धि क्षपणक ने राक्षस के कहने से विषकन्या का प्रयोग करके पर्वतेश्वर को मार डाला, यह दोष प्रसिद्ध करके अपमान पूर्वक उसको नगर से निकाल दें। शिष्य -जो आज्ञा । ( घूमता है)। चाणक्य-बेटा! ठहर-सुन और वह जो शकटदास कायथ है वह राक्षस के कहने से नित्य हम लोगों की बुराई करता है, यही २७० दोष प्रकट करके उसको सूली दे दें और उसके कुटुंब को कारागार में भेज दें। शिष्य-जो आज्ञा महाराज ! ( जाता है)। चाणक्य-(चिंता करके आप ही श्रार) हः ! क्या किसी भाँति यह दुरात्मा राक्षस पकड़ा जायगा ? सि.-महाराज! लिया। . चाणक्य-(हर्ष से आप ही आप ) अहा! क्या राक्षस को ले लिया ? (प्रकाश) कहो, क्या पाया ? सि.-महाराज! आपने जो संदेशा कहा वह मैंने भली भाँति समझ लिया, अब काम पूरा करने जाता हूँ। २८०