पृष्ठ:मुद्राराक्षस नाटक.djvu/११

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आशीर्वाद सत्य हो जो श्लोक कहा है" "वाराहीमात्य'"आदि" वह भरत वाक्य है।

यहाँ तक वस्तु और उसके रूप-विकास पर विचार किया गया । अब नाटक के दूसरे अङ्ग 'नायक' को लिया जाना चाहिए।

पात्रों का चरित्र-चित्रण- इस नाटक के प्रधान पात्र चाणक्य, राक्षस, चन्द्रगुप्त और मलयकेतु हैं। चाणक्य और चन्द्रगुप्त एक पक्ष के हैं, राक्षस और मलयकेतु दूसरे पक्ष के । चन्द्रगुप्त नाटक का प्रधान नायक माना जा सकता है, यद्यपि नाटक में उसका प्रवेश केवल दो स्थानों पर हुआ है। एक तृतीय अङ्क मे गुरु से कलह करने के अभिनय के निमित्त । दूसरे अन्तिम अङ्क में राक्षस के मन्त्रित्व ग्रहण करने के अवसर पर । इन दोनो स्थलो पर चन्द्रगुप्त की जो झॉकी होती है वह अभिराम है । चन्द्रगुप्त धीरोदात्त है । स्वभाव से अत्यन्त विनम्र साथ ही तेजवान् । राक्षस ने चन्द्रगुप्त से प्रभावित होकर उसकी मन ही मन जो प्रशंसा की है, उससे चन्द्रगुप्त पंडित भी प्रतीत होता है । गुरु-भक्त तो था ही। गुरू से झूठे कलह का अभिनय करते समय भी मन मे आशंकित था कि कहीं गुरूजी वास्तव मे रुष्ट न हो जायें । मलयकेतु प्रतिनायक माना जा सकता है । वह असावधान विश्वासी और जल्दबाज है। गॉठ की बुद्धि का इसमे अभाव है, यद्यपि इस बात मे वह गर्व करता है कि वह अपने मन्त्री के वश में नहीं । फलतः वह भागुरायण के वश में है । भागुरायण उसे जैसी बुद्धि देता है, वैसा ही वह करता है। राक्षस पर परिस्थितियो वश जो आरोप हो रहे हैं उन्हें वह सहज ही स्वीकार कर अपने हितैषियों को मरवा डालता है। वह यह भूल जाता है कि कहीं कोई षडयन्त्र भी हो सकता है।