पृष्ठ:मुद्राराक्षस नाटक.djvu/१३४

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पञ्चम अङ्क ११६ जो यही यात है तो इस मनुष्य को चिट्ठी ले कर आप ने कुसुमपुर क्यों भेजा था। राक्षम- देख कर ) अरे! सिद्धार्थक है ? भद्र ! यह क्या ? सिद्धार्थक-(भय और लजा नाट्य कर के) अमात्य; हम को क्षमा कीजिये । अमात्य ! हमारा कुछ भी दोष नहीं है। मार खाते खाते हम आपका रहस्य छिपा न सके। राक्षस-भद्र ! वह कौनसा रहस्य है यह हम को नहीं समझ पड़ता। सिद्धार्थक-निवेदन करते हैं, मार खाने से ('इतना ही कह लजा से नीचा मुंह कर लेता है) मलयकेतु-भागुरायण स्वामी के सामने लज्जा और भय से यह कुछ न कह सकेगा; इससे तुम सब बात आर्य से कहो। भागुरायण-कुमार की जो आज्ञा। अमात्य ! यह कहता है अमात्य राक्षस ने हम को चिट्ठी देकर और संदेश कद्द कर चन्द्रगुप्त के पास भेजा है। राक्षस-भद्र सिद्धार्थक ! क्या यह सत्य है ? सिद्धार्थक-(लजा नाट्य करके ) मार खाने के डर से मैंने कह दिया। राक्षस-कुमार ! मार के डर से लोग क्या नहीं कह देते ? मलयकेतु-भागुरायण | चिट्ठी दिखला दो और संदेशा वह मुह से कहेगा। भागुरायण-(चिट्ठी खोल कर 'स्वस्ति कहीं से कोई किसी को' इत्यादि पढता है ) राक्षस-कुमार! कुमार ! यह सब शत्रु का प्रयोग है।