पृष्ठ:मुद्राराक्षस नाटक.djvu/१३५

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१२० मुद्रा राक्षस मलयकेतु-लेख अशून्य करने को आर्य ने जो आभरण भेजे हैं वह शत्रु कैसे भेजेगा। (याभरण दिखलाता है) राक्षस-कुमार ! यह मैंने किसी को नहीं भेजा। कुमार ने यह मुझ को दिया, और मैंने प्रसन्न होकर सिद्धार्थक को दिया। भी बना लेते हैं। भागुरायण-अमात्य ! ऐसे उत्तम आभरणों का विशेष कर अपने अङ्ग से उतार कर कुमार की दी हुई वस्तु का यह पात्र है ? मलयकेतु-और संदेश भी बड़े प्रामाणिक सिद्धार्थक से सुनना यह आर्य ने लिखा है। राक्षस-कैसा संदेश और कैसी चिट्ठी ? यह हमारा कुछ नहीं हैं। मलयकेतु-तो मुहर किसकी है ? राक्षस -धूर्त लोग कपटमुद्रा भागुरायण-कुमार ! अमात्य सच कहते हैं । सिद्धार्थक ! चिट्ठी किस की लिखी है ? सिद्धार्थक-(राक्षस का मुंह देखकर चुपचाप रह जाता है) भागुरायण-चुप मत रहो । जी कड़ा करके कहो। सिद्धार्थक-आर्य ! शकटदास ने। राक्षस-शकटदास ने लिखा तो मानो मैंने ही लिखा। मलयकेतु-विजये ! शकटदास को हम देखना चाहते हैं। भागुरायण-(आप ही आप) आर्य, चाणक्य के लोग बिना निश्चय समझे हुए कोई बात नहीं करते। जो शकटदास आकर यह चिट्ठी किस प्रकार लिखी गई है यह सब वृत्तान्त कह देगा. तो, मलयकेतु फिर