पृष्ठ:मुद्राराक्षस नाटक.djvu/१३६

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१२१ पञ्चम अङ्क बहक जायगा । (प्रकाश) कुमार शकटदास अमात्य राक्षस के सामने लिखा होगा तो भी न स्वीकार करेगे; इससे उनका कोई और लेख मॅगा कर अक्षर मिला लिये जॉय । मलयकेतु-विजये ! ऐसा ही करो। भागुरायण-और मुहर भी आवे । मलयकेतु-हाँ, वह भी। कंचुकी-जो आज्ञा (बाहर जाता है और मुहर और पत्र लेकर याता है) कुमार ! यह शकटदास का लेख और मुहर है। मलयकेतु (देख कर और अक्षर और मुहर की मिलान कर के) आर्य अक्षर तो मिलते हैं राक्षस (आप ही अाप) अक्षर निस्सन्देह मिलते हैं, किन्तु शकटदास हमारा मित्र है, इस हिसाब से नहीं मिलते तो क्या शकटदास ही ने लिखा अथवा- पुत्र दार की याद करि, स्वामि भक्ति तजि देत । छोड़ि अचल जस को करत, चलधन'सो जन हेत ॥ या इसमे सन्देह ही क्या है ? मुद्रा ताके हाथ की, सिद्धार्थक हू मित्र । ताही के कर को लिख्यौ पत्रहु साधन चित्र ।। मिलि कै शत्रुन सों करन, भेद भूलि निज धर्म । स्वामि विमुख शकटहि कियो, निश्चय यह खल कर्म।। मलयकेतु-आर्य ! श्रीमान ने तीन आभरण भेजे, सो मिले, यह जो आपने लिखा है सो उसी मे का एक अाभरण यह भी है ? (राक्षस के पहने हुये आभरण को देखकर