पृष्ठ:मुद्राराक्षस नाटक.djvu/१४

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और उसी अँगूठी से शकटदास से अपने समस्त कार्य कराता राक्षस में असावधानी भी है। वह सिद्धार्थक को वे आभू- षण पुरस्कार में दे देता है जो मलयकेतु ने उपहार में भेजे हैं। राक्षस प्रत्येक स्थिति को साधारण रूप में और सहन विश्वास से ग्रहण करता है, तभी अन्त में उसके लिए जीवसिद्धि और सिद्धार्थक के व्यापार आश्चर्यकारक होते हैं । राक्षस हमे शस्त्र- वीर भी दीखता है।

वह कुसुमपुर की घेरे की बात सुनके उत्तेजित हो उठता है तो स्वयं पराक्रम से उस आक्रमण को रोकना चाहता है। चन्दनदास की रक्षा के लिए तलवार खींचकर श्मशान में जाना चाहता है। राक्षस भावों मे कृतज्ञ है और उदार है।

अन्य पात्रों में हमे चन्दनदास विशेष आकर्षित करता है। वह आदर्श मित्र है। अपने प्राणों की चिन्ता न करके राक्षस के कुटुम्ब की रक्षा करता है । वह हंसते हँसते शूली पर चढ़ने को तय्यार है।

'रस--इस नाटकं में वीर रस प्रधान है। कर्मवीरत्व के आदर्श उदाहरण इस नाटक में प्रस्तुत हुए हैं। चाणक्य ओर राक्षस किसो स्वार्थ से प्रेरित नहीं। उनमें शुद्ध कर्मवीरत्व की. भावना है । उन्हें जो अपना कर्तव्य प्रतीत होता है, उसे उत्साह और आनन्द से कर रहे हैं । इस वीर रस का पोषण अद्भुत के द्वारा हुआ है।

दोष-परिहार-- इस नाटक पर यह दोष लगाया जाता है कि इसके द्वारा कोई उत्तम शिक्षा नहीं मिलती। यह दोष निरा- धार है चाणक्य और राक्षस दोनो के चरित्र आदर्श हैं। निस्वार्थ कर्म भावना का जो उपदेश इस नाटक से मिलता है,