पृष्ठ:मुद्राराक्षस नाटक.djvu/१४९

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१३४ मुद्रा राक्षस पुरुष-आपको इसमें बड़ा ही हठ है तो कहना पड़ा। इस नगर मे जिष्णुदास नामक एक महाजन है। राक्षस-(आप ही आप ) वह तो चन्दनदास का बड़ा मित्र है। पुरुष-वह हमारा प्यारा मित्र है। राक्षस-(आप हो आप ) कहता है कि वह हमारा प्यारा मित्र है। इस अति निकट संबंध से इसको चन्दनदास का वृत्तान्त ज्ञात होगा। पुरुष-(रोकर ) “सो दीन जनों को सब धन देकर वह अब अग्निप्रवेश करने जाता है ।" यह सुन कर हम यहाँ आये हैं कि "इस दुःख वार्ता सुनने के पूर्व ही अपना प्राण दे दें। राक्षस-भद्र ! तुम्हारे मित्र के अग्निप्रवेश का कारण क्या है ? कै तेहि रोग असाध्य भयो कोऊ, जाको न औषध नाहिं निदान है। पुरुष नहीं आर्य! राक्षस-कै विष अग्निहु सों बढ़ि के, नृपकोप महा फॅसि त्यागत प्रान है। पुरुष-राम राम ! चन्द्रगुप्त के राज्य में लोगों को प्राणहिसा का भय कहाँ? राक्षस-कै कोउ सुन्दरी पै जिय देत, लग्यो हिय माँहि वियोग को बान है। पुरुष-राम राम ! महाजन लोगों की यह चाल नहीं, विशेष कर साधु जिष्णुदास की। राक्षस - तो कहें मित्रहि को दुख वाहू के, नास को हेतु तुम्हारे समान है। +