पृष्ठ:मुद्राराक्षस नाटक.djvu/१५४

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छठा अंक १३६ देखते हैं तो छुड़ाले जाने के भयसे अपराधीको बीचही मे तुरन्त मार डालते हैं। इससे शस्त्र खींचे हुए आप के वहाँ जाने से चन्दनदास की मृत्यु में और भी शीघ्रता होगी (जाता है) राक्षस-(आप ही आप ) उस चाणक्य बटु का नीतिमार्ग कुछ समझ नहीं पड़ता, क्योकि- सकट बच्यो जो ता कहे, तो क्यों घातक घात । जाल भयो का खेल मैं, कछु समभ्यो नहिं जात ।। ( सोच कर ) नहिं शस्त्र को यह काल यासों मीत जीवन जाइ है। जो नीति सोचै या समय तो व्यर्थ समय नसाइ है ॥ चुप रहनहू नहिं जोग जब मम हित बिपति चन्दन परयौ । तासों बचावन प्रियहि अब हम देह निज विक्रम करयौ। (तलवार, फेक कर जाता है) . 3 छठा अंक समाप्त हुआ।