पृष्ठ:मुद्राराक्षस नाटक.djvu/१५७

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१४२ मुद्रा-राक्षस स्त्री-(सू भर कर) नाथ ! कृपा करके मुझे भी साथ ले चलो। चंदनदास-हा ! यह तुम कैसी बात कहती हो ? अरे ! तुम इस बालक का मुंह देखो और इसकी रक्षा करो, क्योंकि यह बिचारा कुछ भी लोकव्यवहार नहीं जानता, यह किसका मुह देख कर जीयेगा ? स्त्री-इसकी रक्षा कुलदेवी करेगी। बेटा ! अब पिता फिर न मिलेंगे इससे मिल कर प्रणाम कर ले । बालक-(पैरों पर गिर के) पिता! मैं आपके बिना क्या करूँगा चन्दनदास-बेटा ! जहाँ चाणक्य न हो वहाँ बसना। दोनो चांडाल-(सूली खडी कर के ) अजी चन्दनदास ! देखो, सूली खड़ी हुई, अब सावधान हो जाओ। स्त्री-(रो कर) लोगो, बचाओ, अरे ! कोई बचाओ। चन्दनदास-भाइयो तनिक ठहरो ( स्त्री से ) अरे ! अब तुम रो रोकर क्या नन्दो को स्वर्ग से बुला लोगी ? अब वे लोग यहाँ नहीं हैं जो स्त्रियों पर सर्वथा दया रखते थे १ चाँडाल-अरे वेणुवेत्रक ! पकड़ इस चन्दनदास को घर वाले आप ही रो पीट कर चले जायेगे। २ चॉडाल-अच्छा बज्रलोकम्, मैं पकड़ता हूँ। चन्दनदास-भाइयो! तनिक ठहरो, मैं अपने लड़के से मिल लू (लड़के को गले लगाकर और माथा सूघ कर ) बेटा ! मरना तो था ही पर एक मित्र के हेतु मरते हैं इससे सोच मत कर। पुत्र-पिता! क्या हमारे कुल के लोग ऐसा ही करते आये हैं ? (पैर पर गिर पड़ता है।)