पृष्ठ:मुद्राराक्षस नाटक.djvu/१५९

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१४४ मुद्रा राक्षस ! १ चांडाल-अरे वेणुवेत्रक ! तू चन्दनदास को पकड़ कर इस मसान के पेड़ की छाया मे बैठ, तब तक मन्त्री चाण- क्य को मै समाचार दूं कि अमात्य राक्षस पकड़ा गया। २ चांडाल-अच्छा रे बज्रलोमक ! (चन्दनदास स्त्री, बालक, और सूली को लेकर जाता है)। १ चांडाल-(राक्षस को लेकर घूम कर ) अरे! यहाँ पर कौन है ? नन्दकुल सेनासञ्चय के चूर्ण करने वाले वज्र से, वैसे ही मौर्यकुल मे लक्ष्मी और धर्म स्थापना करने वाले आर्य चाणक्य से कहो। राक्षस-(आप ही श्राप ) हाय ! यह भी राक्षस को सुनना , लिखा था। १ चाण्डाल-कि आपकी नीति ने जिसकी बुद्धि को घेर लिया है, वह अमात्य राक्षस पकड़ा गया। (परदे मे सब शरीर छिपाये केवल मुंह खोले चाणक्य आता है) चाणक्य-अरे कहो कहो। किन निज वसनहि में धरी, कठिन अगिनि की ज्वाल ? रोकी किन गति वायु की डोरिन ही के जाल ? किन गजपति मर्दन प्रबल, सिंह पींजरा दीन ? किन केवल निज बाहु बल, पार समुद्रहि कीन ? १ चाण्डाल-परमनीतिनिपुण आपही ने तो। चाणक्य-अजी ! ऐसा मत कहो, वरन् “नन्दकुलद्वेषी देव ने" यह कहो। राक्षस--(देख कर श्राप ही प्राप) अरे ! क्या यही दुरात्मा वा महात्मा कौटिल्य है।