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मुद्रा-राक्षस

है, किन्तु देखने में नहीं आई। महाराज तञ्जौर के पुस्तकालय में व्यासराज यज्वा की एक टीका और है।

चन्द्रगुप्त* की कथा विष्णुपुराण, भागवत आदि पुराणों में और वृहत्कथा में वर्णित है। कहते हैं कि विकटपल्ली के राजा चन्द्रदास का उपाख्यान लोगों ने इन्हीं कथाओ से निकाल लिया है।

महानन्द अथवा महापद्मनन्द भी शूद्रा के गर्भ से था, और कहते हैं कि चन्द्रगुप्त इसकी एक नाइन स्त्री के पेट से पैदा हुआ था। यह पूर्व पीठिका में लिख आए हैं कि इन लोगो की राजधानी पाटलिपुत्र थी। इस पाटलिपुत्र (पटने) के विषय में यहाँ कुछ लिखना अवश्य हुआ। सूर्यवंशी सुदर्शन † राजा की पुत्री पाटली ने पूर्व में इस नगर को बसाया। कहते हैं कि कन्या को बन्ध्यापन के दुःख और दुर्नाम से छुड़ाने को राजा ने एक नगर बसाकर उसका नाम पाटिलपुत्र रक्खा था। वायुपुराण में जरासन्ध के “पूर्व पुरुष बसु राजा ने बिहार प्रान्त का राज्य संस्थापन किया” यह लिखा है। कोई कहते हैं कि ‘वेदो में जिस वसु के यज्ञ का वर्णन है वही राज्यगिरि राज्य का संस्थापक है।’ (जो लोग चरणाद्रि को राजगृह का पर्वत बतलाते हैं उनका केवल भ्रम है।) इस राज्य का प्रारम्भ चाहे जिस तरह हुआ हो, पर जरासन्ध ही के समय से यह प्रख्यात हुआ।


  • प्रियदशी, प्रिदर्शन, चन्द्र, चन्द्रगुप्त, श्रीचन्द्र चन्द्रश्री, मौर्य यह सब चन्द्रगुप्त के नाम हैं; और चाणक्य, विष्णुगुप्त, द्रौमिल वा द्रोहिण अशुल, कौटिल्य यह सब चाणक्य के नाम हैं।

† सुदर्शन, सहस्रवाहु अर्जुन का भी नामान्तर था। किसी किसी ने भ्रम से पाटली की शूद्रक की कन्या लिखा है