पृष्ठ:मुद्राराक्षस नाटक.djvu/१७६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१६१
उपसंहार ख

पुण्य समझते थे। प्रजापाल नामक एक राजा ने सन् १४०० के लगभग बीस बरस मगधदेश को स्वतन्त्र रक्खा। कितु आर्यम- त्सरी दैव ने यह स्वतन्त्रता स्थिर नहीं रक्खी और पुण्यधाम गया फिर मुसलमानों के अधिकार से चला गया। सन् १४७८ तक यह प्रदेश जौनपुर के बादशाह के अधिकार मे रहा फिर बहलूलवंश ने इसको जीत लिया था, किन्तु १४९१ मे शाहंशाह ने फिर जीत लिया। इसके पीछे बंगाल के पठानो से और जौनपुर वालों से कई लड़ाई हुई और १४९४ में दोनो राज्य में एक सुलहनामा होगया । इसके पीछे सूर लोगों का अधिकार हुआ और शेरशाह ने बिहार छोड़ कर पटने को राजधानी किया। सूरो के पीछे क्रमान्वय से ( १५७५ ई० ) यह देश मुगलों के आधीन हुआ और अन्त मे जरासन्ध और चन्द्रगुप्त की राज- धानी पवित्र पाटलिपुत्र ने आर्य्य वेश और आर्य्यनाम परित्याग करके औरंगजेब के पोते अजामशाह के नाम पर अपना नाम अजीमायाद प्रसिद्धि किया। (१६९७ ई० बंगाल के सूबेदारो में सब से पहिले सिराजुद्दौला ने अपने को स्वतन्त्र समझा था, किंतु १७५७ ई० की पलासी का लड़ाई मे मीरजाफर अङ्गरेजों के बल से बिहार बंगाल और उड़ीसा का अधिनायक हुआ। कितु अन्त मे जगद्विजयी अंगरेजों ने सन् १७६३ मे पूर्व में



का एक महादेव का मन्दिर है। पहाड़ के नीचे एक टूटा गढ़ भी देख पडता है। जान पड़ता है कि पहले राजा देव के घराने के लोग यहाँ ही रहते थे, पीछे देव में बसे। और देव उमगा दोनों इन्ही की राजधानी थीं, इससे दोनों नाम साथ ही बोले जाते हैं ( देवमूँँगा ) तिल सक्रान्ति को उमगा में बडा मेला लगता है।” इससे स्पष्ट हुआ कि उदयपुर से जो राणा लोग आये उन्हीं के खानदान मे देव के राजपूत हैं और विहारदर्प्पण से भी यह बात पाई जाती है कि मडियार लोग मेवाड़ से आये हैं।