पृष्ठ:मुद्राराक्षस नाटक.djvu/१८०

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उपसंहार ख

नाश करना चाहा, इससे वह शकटार के घर में छिपा। उसकी स्त्री उपकोशा पति को मृत समझ कर सती हो गई। योगानन्द के पुत्र हिरण्यगुप्त के पागल होने पर वररुचि फिर राजा के पास गया था, किन्तु फिर तपोवन में चला गया, फिर शकटाल के कौशल से चाणक्य नन्द के नाश का कारण हुआ। उसी समय शकटाल ने हिरण्यगुप्त जो कि योगानन्द का पुत्र था उसको मार कर चन्द्रगुप्त को, जो कि असली नन्द का पुत्र था, गद्दी पर बैठाया।

ढुंढि पण्डित लिखते हैं कि सर्वार्थसिद्धि नन्दो में मुख्य था। इसके दो स्त्रियाँ थीं। सुनन्दा बड़ी थी और दूसरी शूद्रा थी, उसका नाम मुरा था। एक दिन राजा दोनो रानियों के साथ एक ऋषि के यहॉ गया और ऋषिकृत मार्जन के समय सुनन्दा पर नौ और मुरा पर एक छींट पानी की पड़ी। मुरा ने ऐसी भक्ति से उस जल को ग्रहण किया कि ऋषि ने प्रसन्न होकर वरदान दिया। सुनन्दा को एक माँसपिण्ड और मुरा को मौर्य उत्पन्न हुआ। राक्षस ने मॉस पिण्ड काट कर नौ टुकड़े किये जिससे नौ लड़के हुए। मौर्य के सौ लड़के थे, जिसमे चन्द्रगुप्त सबसे बड़ा और बुद्धिमान् था। सर्वार्थसिद्धि ने नन्दों को राज्य दिया और आप तपस्या करने लगा। नन्दों ने ईर्षा से मौर्य्य और उसके लड़कों को मार डाला, किन्तु चन्द्रगुप्त चाणक्य ब्राह्मण के पुत्र विष्णुगुप्त की सहायता से नन्दों को नाश करके राजा हुआ।

ज्योहीं भिन्न-भिन्न कवियों और विद्वानों ने भिन्न-भिन्न कथायें लिखी हैं। किन्तु सबके मूल का सिद्धान्त पास-पास एक ही आता है। इतिहास-तिमिर-नाशक में इस विषय में जो कुछ लिखा है वह नीचे प्रकाशित किया जाता है।