पृष्ठ:मुद्राराक्षस नाटक.djvu/१८१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१६६
मुद्रा राक्षस

बिम्बसार को उसके लड़के अजातशत्रु ने मार डाला। मालूम होता है कि यह फसाद ब्राह्मणों ने उठाया। अजातशत्रु बौद्ध मत का शत्रु था। शाक्यमुनि गौतम बुद्ध श्रीवस्ति में रहने लगा। यहाँ भी प्रसेनजित को उसके बेटे ने गद्दी से उठा दिया; शाक्यमुनि गौतम बुद्ध कपिलवस्तु में गया।


अजातशत्रु की दुश्मनी बौद्ध मत से धीरे धीरे बहुत कम होगई शाक्यमुनि गौतम बुद्ध फिर मगध में गया। पटना उस समय एक गाँव था। वहाँ हरकारों की चौकी में ठहरा वहाँ से विशाली में गया। विशाली की रानी वेश्या थी यहाँ से पार्वा गया वहॉ से कुशीनार गया। बौद्धों के लिखने बमूजिव उसी जगह सन् ईसवी ५४३ बरस पहले ७० वर्ष की उम्र में साल के वृक्ष के नीचे बाई करवट लेटे हुए इस का निर्वाण हुआ। काश्यप उसका जानशीन हुआ। अजातशत्रु के पीछे तीन राजा अपने बाप को मार कर मगध की गद्दी पर बैठे, यहाँ तक कि


(१) जैनी महावीर के समय विशाली अथवा विशाला का राजा चेटक * बतलाते हैं, यह जगह पटने के उत्तर तिरहुत मे हैं; उजड गई है। वहाँ वाले अब उसे बसहर पुकारते हैं।

(२) जैनी यहाँ महावीर का निर्वाण बतलाते हैं, पर जिस जगह को अब पावापुर मानते हैं असल में वह नहीं है। पावा विशाली से पश्चिम और गंगा से उत्तर होना चाहिये।

(३) जैन अपने चौबीसवें अर्थात् सबसे पिछले तीर्थङ्कर महावीर का निर्वाण विक्रम के सम्वत् से ४७०, अर्थात् सन् ईस्वी से ५२७ बरस पहले बतलाते हैं और महावीर के निर्वाण से २५० बरस पहले अपने तेईसवे तीर्थकर पार्श्वनाथ का निर्वाण मानते हैं।


  • कैसे आश्चर्य की बात है, चेटक रंडी के भड़वे को भी कहते हैं

(हरिश्चन्द्र)।