पृष्ठ:मुद्राराक्षस नाटक.djvu/१८५

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पृष्ठ ३३―कलकल = कोलाहल।

पृष्ठ ४०―हिमाद्रि = हिमालय पर्वत।

पृष्ट ४६―मण्डल = व्यूह। बोहनी = प्रारम्भिक विधि।

पृष्ट ४७―बारवधू = वैश्या।

पृष्ठ ४८―अशु = प्राण। बुद्धिसर = बुद्धि रूपी बाण से।

पृष्ठ ५१―जोधन = योधाओं से।

पृष्ट ५३―घटोत्कच = भीमसेन का पुत्र। करन = कर्ण महा- भारत की कथा)

पृष्ठ ५५―अभिसेक = राजतिलक। बर्वर = जाति विशेष।

पृष्ठ ७३―कौमुदी महोत्सव = कार्तिकी पूर्णिमा के दिन होने वाला उत्सव। मूरक्षा = बेहोशी।

पृष्ठ ७१―वृषल = शूद्रा से उत्पन्न, चन्द्रगुप्त।

पृष्ठ ७३―निवेरिकै = पूरा करके। विट = सखा।

पृष्ठ ७४―धरसि = नाश।

पृष्ठ ७२―सुरधुनी-कन = गङ्गाजी की बूंंदे।

पृष्ठ ७५―घनपटली = मेघो की छत। ढरारे = चलायमान होने वाले। दन्तपात = दॉत टूटना।

पृष्ठ ८७―वलय = कङ्कड़। अलक = बाल।

पृष्ट १००―लखौटा = विखावट।

पृष्ठ ११५―अन्वित = मिला हुआ।

पृष्ठ ११७―अवगाहि = डूबी हुई। अवनीस = राजा।

पृष्ठ १२५―गण्डजुगल = दोनों गाल।

पृष्ठ १२७―जलद-नील-तन = जलद के समान नीला तन है जिनका (कृष्ण भगवान)। केशी = राक्षस का नाम है जिसको भगवान् कृष्ण ने मारा था।

पृष्ठ १२८―निवर्हण = निवाहना (कार्य रूप)। वयस्य = मित्र, सखा।