पृष्ठ:मुद्राराक्षस नाटक.djvu/१८६

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पृष्ट १३०―अनुगौन=पीछे चलना। आप्त=श्रेष्ट। सैले- श्वरहिं=पव्यतेश्वर को।

पृष्ट १३१―सन्धान=धनुष खींचना। परिखनि=पहिए की लीक।

पृष्ट १३२―पिडूक=एक पक्षी का नाम। फाहा=मरहम की पट्टी। वन=घाव। पटह=ढोल।

पृष्ट १३७―निष्कृय=तेज, धार दार।

पृष्ठ १४४―वसनहि=कपड़ो मे। आरत-बुरा।

पृष्ट १४५―लेख=पत्र।

पृष्ठ १४६―निषङ्ग=तरकश। जूथाधिप=सेना नायक।

कठिन पद्यों का अथ

पृष्ट २०―पद्य संख्या ७ चद्रविम्ब=चंद्रमण्डल, पूरन=पूरा नहीं। हठ दाप=जिद से, हठ से। वुध=बुध ग्रह।

चन्द्रमा के अधूरे ही बिम्ब को क्रूर स्वभाव वाला केतु हठ कर के बल से ग्रसना चाहता है, परन्तु बुध जैसे रक्षक होने के कारण वह ऐसा करने को असमर्थ है।

२―चन्द्रविम्ब पूरन=चन्द्रगुप्त जिसका अभी पूरा अधि- कार नहीं। क्रूर=राक्षस। केतु=मलयकेतु। ग्रास=पकड़ना। बुध=चाणक्य।

अर्थ―राक्षस मलयकेतु का सहायक बनकर अधूरे अधिकार चाले चन्द्रगुप्त को बल से राज्यच्युत करना चाहता है परन्तु ऐसा कौन कर सकता है जब तक कि बुद्धिमान चाणक्य उस की रक्षा करता है।

पृष्ठ २६―दिस सरिस......गजराज को।