पृष्ठ:मुद्राराक्षस नाटक.djvu/१८८

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कृष्ण भगवान् की रक्षा में जय यादव लोग बहुत बढ़ गये और उनके अभिमान का वारापार न रहा तो भगवान् की प्रेरणा से उनको प्रभास क्षेत्र में ब्राह्मण से शाप लगा जिसके कारण वे सब आपस मे कट मर गये। केवल बलराम तथा कृष्ण दो ही शेष रह गये थे तब बलिराम तो योगाभ्यास से समुद्र के तीर अन्तर्द्धान हो गये और कृष्ण भगवान् एक व्याधा के हाथ से मारे गये जिसको कि उन्होने बालि वानर रूप मे पम्पापुर में मारा था।

उसी प्रकार ब्राह्मण के द्वारा ही नन्दवंश का सर्वनाश हुआ।

पृष्ठ ५१―नृपनन्द काम..... पाइ है।

जैसे चाणक्य ने अपनी नीति कुशलता से नन्दवंश का सर्व- नाश कर चन्द्रगुप्त का स्थापन किया। उसी प्रकार मेरे बुढ़ापे के कारण मेरी काम वासना जाती रही और धर्म उसका स्थानापन्न हुआ है। जैसे समय पाकर लोभ जिस प्रकार धर्म पर विजय पाने का प्रयत्न करता है वैसे ही राक्षस चन्द्रगुप्त पर विजय पाना चाहता है। परन्तु लोभ (बुढ़ापे के कारण) और राक्षस (रात दिन के सोच के कारण) शिथिल बल हैं इसलिये उन पर विजय पाना कठिन काम है।

पृष्ठ ५२―सकल कुसुम.....जगकाज।

रसिक सिरोमणि भौंरा सब फूलो से रस लेकर जिस प्रकार शहद बनाता है और उसे जो पीछे छोड़ता है (अर्थात् बचा रखता है) तो उससे संसार के लोगों को बड़ा लाभ होता है। (अर्थात् मैंने कुसुमपुर का सब हाल जान लिया है उससे सब काम ठीक होगा।)

पृष्ठ ५३―लै वाम... ...आलिङ्ग करे।