पृष्ठ:मुद्राराक्षस नाटक.djvu/१९

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मुद्रा-राक्षस


दो लाख पैदल लेकर महानन्द ने उसके विरुद्ध प्रयाण किया था। सिद्धान्त यह है कि भारतवर्ष में उस समय महानन्द सा प्रतापी और कोई राजा न था।

महानन्द के दो मंत्री थे। मुख्य का नाम शकटार और दूसरे का राक्षस था। शकटार शूद्र और राक्षस। ब्राह्मण था। ये दोनो अत्यन्त बुद्धिमान और महा प्रतिभा सम्पन्न थे। केवल भेद इतना था कि राक्षस धीर और गम्भीर था, उसके विरुद्ध शकटार अत्यन्त उद्धत स्वभाव था। यहाँ तक कि अपने प्राचीनपने के अभिमान से कभी कभी यह राजा पर भी अपना प्रभुत्व जमाना चाहता। महानन्द - भी अत्यन्त उग्र स्वभाव, असहनशीन और क्रोधी था, जिसका परिणाम यह हुआ कि महानन्द ने अन्त में शकटार को क्रोधान्ध होकर बड़े निविड़ पन्दीखाने में कैद किया और सपरिवार उसके भोजन को केवल दो सेर सत्तू देना निश्चित कर दिया।


  • सिकन्दर के कान्यकुब्ज से आगे न बढ़ने के कारण महानन्द को

उससे मुकाबिला नहीं हुआ।

वृहत् कथा में राक्षम मंत्री का नाम कही नही है, केवले. वररुचि और एक सच्चे राक्षस की कथा यों लिखी है-एक बड़ा प्रचण्ड' राक्षस पाटिलिपुत्र में फिरा करता था। वह एक रात्रि वररुचि से मिला और पूछा कि “इस नगर में कान स्त्री सुन्दर है ?"वररुचि ने उत्तर दिया- "जो जिसको रुचे वही.मुन्दर है। इस पर प्रसन्न हो कर राक्षस ने, उससे मित्रता की और कहा कि हम-सब बात में तुम्हारी सहायता करगे ! और फिर सदा राजकाज में प्रत्यक्ष होकर राक्षस वररुचि की सहायता करता।

हत्कथा में यह कहानी और ही चाल पर लिखी है। वररुचि व्यादि और इन्द्रमत्त तीनो को गुरु दक्षिणा देने के हेत करोड़ों रूपये के