पृष्ठ:मुद्राराक्षस नाटक.djvu/१९०

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दिया। उसी समय दुर्योधन ने (जो पाण्डवों से जलता था कर्ण को अङ्गदेश का राजा बना दिया परन्तु तब भी लड़ाई न हुई। दुर्योधन तथा कर्ण में गहरी मित्रता हो गई। कर्ण महा- भारत मे दुर्योधन की ओर से लड़े थे। कर्ण के पास कुछ ऐसे वाण थे जो व्यर्थ नहीं जाते थे उनको इन्द्र मॉग ले गये कि कहीं ये अर्जुन को मार न दें और उसके बदले मे अमोघ शक्ति दे गये। कर्ण उस शक्ति से अर्जुन को मारना चाहते थे परन्तु वह भी शक्ति कृष्ण की प्रेरणा से घटोत्कच पर छोड़ी गई।

घटोत्कच―यह एक राक्षसी से पैदा भीम का पुत्र था और बड़ा पराक्रमी था।

पृष्ठ ६१―वह सूली.........मनतं।

वह जो राज्य दण्ड की सूली गढ़ी है बड़ी दृढ़ है उसी ने चन्द्र का राज्य स्थिर किया है। वह जो सूली मे रस्सी है वही मानो राज्य लक्ष्मी चन्द्रगुप्त से लपटी हुई है।

पृष्ठ ७७―अहो... ...अहो विभव दरसाई।

यह शरद ऋतु महादेव बन कर आई है जो फूले हुए कॉसों की ही भस्म रमाये हुए है। और उगा हुआ चन्द्र ही मानो शीष- फूल है जो बड़ी शोभा दे रहा है। बादलो की अवली ही मानो राज चर्म है। खिले हुए पुष्प मानो मुण्डमाला है। राज हंस ही मानो महादेवजी की हसी है जिससे आनन्द आता है।

पृष्ठ ७―हरौ हरि ..........उरमाहीं।

शरद ऋतु को आई हुई जान कर जगत के शुभचिंतक शेष- नाग की गोद मे जागे हुए कृष्ण भगवान के कुछ २ खुले हुए, कुछ मुदे हुए, आलस से भरे हुए, लाल कमल के रंग जैसे मतवाले ठहरे हुए भी चलायमान, तथा शेष नाग की मणि की कान्ति के चकाचौंध में संकुचित न होने वाले, (जागते समय)