पृष्ठ:मुद्राराक्षस नाटक.djvu/१९४

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हिंगुरात―यह चन्द्रगुप्त के द्वारपालों का मुखिया था यह भी चाणक्य की आज्ञा से मलयकेतु के यहाँ जा रहा था।

बलगुप्त―चन्द्रगुप्त का नातेदार भेद लेने को मलयकेतु के यहाँ जा रहा था।

राजसेन―महाराज के लड़कपन का सेवक था। यह भी चाणक्य का भेदिया बन कर मलयकेतु की सेना में जा रहा था।

भद्रभट―चाणक्य का भेदिया था जो मलयकेतु के यहाँ नौकर हो गया था।

चन्द्रभानु―यह चन्द्रगुप्त के घोड़ों का अध्यक्ष था। यह भी चाणक्य के कहने से मलयकेतु की फ़ौज में जा मिला था।

सिंहवल दत्त―चन्द्रगुप्त का सेनापति मलयकेतु के यहॉ भर्ती हो गया था।

रोहिताक्ष―यह मालवा नरेश का पुत्र था। चन्द्रगुप्त के यहाँ रहता था परन्तु चाणक्य की सलाह से मलयकेतु के यहाँ चला गया था।

मलयकेतु―पर्वतेश्वर का पुत्र-था। पिता के मरने के पीछे यह भी राक्षस की सहायता पाकर चाणक्य पर चढ़ाई करने का प्रयत्न करने लगा, परन्तु चाणक्य के चरों द्वारा इसमें और राक्षस में फूट पड़ गई और राक्षस जैसे ही चन्द्रगुप्त का मन्त्री बना कि यह कैद कर दिया गया। किन्तु राक्षस की राय से इसका राज्य इसे वापिस कर दिया गया।

दीर्घचक्षु―मलयकतु के द्वार का रक्षक था।

शिखरसेन―मलयकेतु का सेनापति जिसको हाथी से कुचल- वाने की पर्वतेश्वर ने आज्ञा दी थी।