पृष्ठ:मुद्राराक्षस नाटक.djvu/२२

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पूर्व-कथा


होगा, आपको कैदखाने से छुड़ाऊगी और जन्म भर आपकी दासी होकर रहूँगी।"

राजा ने विचक्षणा से एक दिन फिर हँसने का कारण पूछा, तो विचक्षण ने शकटार से जैसा सुना था कह सुनाया। राजा ने चमत्कृत होकर पूछा-"सच बता, तुझसे यह भेद किसने कहा ?” दासी ने शकटार का सब वृत्त, कहा और राजा को शकटार की बुद्धि की प्रशंसा करते देख अवसर पाकर उसके मुक्त होने की प्रार्थना भी की। राजा ने शकटार को बन्दी से छुड़ा कर राक्षस के नीचे मन्त्री बना कर रखा।

ऐसे अवसर पर राजा लोग बहुत चूक जाते है। पहिले तो किसी की अत्यन्त प्रतिष्ठा बढ़ानी ही नीति विरुद्ध है। यदि संयोग से बढ़ जाय तो उसकी बहुत सी यातो को तरह देकर टालना चाहिये, और जो कदाचित् बड़े प्रतिष्ठित मनुष्य का राजा अनादर करे तो उसकी जड़ काट कर छोड़े, फिर उसका कभी विश्वास न करे । प्रायः अमीर लोग पहिले तो मुसाहिब या कारिन्दों को बेहतर सिर चढ़ाते हैं, और फिर छोटी-छोटी थातों पर उनको प्रतिष्ठाहीन कर देते हैं। इसीसे ऐसे लोग राजाओं के प्राण के ग्राहक हो जाते हैं और अन्त में नन्द की भाँति उनका सर्वनाश होता है।

शकटार यद्यपि बन्दी खाने से छूटा और छोटा मन्त्री भी हुआ, किन्तु अपनी अप्रतिष्ठा और परिवार के नाश का शोक उस के चित्त में सदा पहिले ही सा जागता रहा । रात दिन वह यही सोचता कि किस उपाय से ऐसे अव्यवस्थित चित्त, उद्धत राजा का नाश करके अपना बदला लें । एक दिन वह घोड़े पर हवा खाने जाता था। नगर के बाहर एक स्थान पर देखता है कि एक काला सा ब्राह्मण अपनी कुटी के सामने मार्ग की कुशा उखाड़ उखाड़कर