पृष्ठ:मुद्राराक्षस नाटक.djvu/२६

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पूर्व-लथा


बोरा सरसों और एक मीठा फल महानन्द के पास अपने दूत के द्वारा भेज दिया । राजा की सभा का कोई भी मनुष्य इसको आशय न समझ सका; किन्तु चन्द्रगुप्त ने सोच कर कहा कि अँगीठी यह दिखलाने को भेजी है कि मेरा क्रोध अग्नि है और सरसों यह सूचना कराती है कि मेरी सेना असंख्य है और फल भेजने का आशय है कि मेरी मित्रता का फल मधुर है। इसके उत्तर में चन्द्रगुप्त ने एक घड़ा जल और एक पिंजड़े में थोड़े से सीतर और एक अमूल्य रत्न भेजा, जिसका आशय यह था कि तुम्हारी सेना कितनी भी असंख्य क्यों न हो हमारे वीर उसको भक्षण करने में समर्थ हैं और तुम्हारा क्रोध हमारी नीति में सहज ही बुझाया जा सकता है और हमारी मित्रता सदा अमूल्य... और एक रस है। ऐसे ही तीन पुतलियों वाली कहानी भी इसी के साथ प्रसिद्ध है। इसी बुद्धिमानी के कारण चन्द्रगुप्त से उसके भाई लोग चुरा मानते थे! और महानन्द भी अपने औरस पुत्रों का पक्ष करके इससे कुढ़ता था। यह यद्यपि शुद्रा के गर्भ से था, परन्तु ज्येष्ठ होने के कारण अपने को राज का भागी सम- झता था, और इसी से इसका गजपरिवार से पूर्ण वैमनस्य था। चाणक्य और शफटार ने इसीसे निश्चय किया कि हम लोग चन्द्रगुप्त को राज का लोभ देकर अपनी ओर मिला लें और नन्दों का नाश करके इसी को राजा बनावें।

यह सब सलाह पक्की हो जाने के पीछे चाणक्य तो अपनी पुरानी कुटी में चला गया और शकटार ने चन्द्रगुप्त और विचक्षणा को तब तक सिखा पढ़ा कर पका करके अपनी ओर फोड़ लिया। चाणक्य ने कुटी में जाकर हलाचल, विष मिले हुए कुछ ऐसे पकवान तैयार किये जो परीक्षा करने में न पकड़े जायँ, किन्तु खाते ही प्राणनाश हो जाय । विचक्षणा ने किसी प्रकार से महानन्द को पुत्रों समेत रह पकवान लिखा