पृष्ठ:मुद्राराक्षस नाटक.djvu/३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( २ )

भेद 'नाटक' का है। प्रकरण, भाण, प्रहसन, डिम, व्यायोग, समवकार, वीथी, अंक ओर ईहामृग आदि अन्य नौ भेदों मे से प्रकरण और प्रहसन भी कुछ महत्व रखते हैं, इन भेदों को भी विशेष रूप से लेखकों ने अपनाया है, पर नाटक की समानता ये भी नहीं कर सके।

नाटक के गुण-नाटक की कथा विख्यात होनी चाहिये। इतिहास अथवा पुराण से उसका वृत्त लिया जाना चाहिये। इसमें विविध रसों का समावेश होता है। पर शृङ्गार और वीर रस इसे विशेष प्रिय हैं। पाँच से दस तक अंक होते हैं। नायक कोई प्रतापी पुरुष होना चाहिए, जो धीरोदात्त हो, ओर राज- वंश का हो।

मुद्राराक्षस का प्रकार-शास्त्र की दृष्टि से 'मुद्राराक्षस' 'नाटक' है। उसका इतिवृत्त ऐतिहासिक है।नायक राजवंश का है। सात अंक हैं। प्रधान रस 'वीर' रस है।

नाटक के अङ्ग-हमें यहाँ यह भी देख लेना है कि नाटक के अंग क्या हैं ? उनका मुद्राराक्षस में क्या रूप है ? नाटक के मुख्य तीन अंग हैं : १ वस्तु, २ नायक, और ३ रस,

वस्तु-वस्तु दो प्रकार की होती हैं, पहली आधिकारिक दूलरी प्रासंगिक । आधिकारिक वस्तु ही नाटक की प्रधान वस्तु है । यह वस्तु आदि से अन्त तक चलती है। इसी का बीज- वपन होता है इसी का फलागम । 'मुद्राराक्षस' में हम चाणक्य को यह कहते सुनते हैं । "अथवा जब तक राक्षस नहीं पकड़ा जाता तब तक नंदों के मारने से क्या और चन्द्रगुप्त को राज्य मिलने से ही क्या ?......"वाह राक्षस मन्त्री वाह ! क्यों न हो !वाह मन्त्रियों में वृहस्पति के समान वाह ! तू धन्य है क्योंकि-