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पूर्व-कथा


नामक एक बड़े धनी जौहरी के घर में अपने कुटुम्ब को छोड़ कर और शकटदास कायस्थ, तथा अनेक राजनीति जानने पाले विश्वासपात्र मित्रों को और कई आवश्यक काम सौप कर राजा सर्वार्थसिद्धि के फेर लाने के लिये- आप तपोवन की ओर गया।

चाणक्य ने जीवसिद्धि द्वारा यह सब सुनकर राक्षस के पहुँचने के पहले ही अपने मनुष्यों से राजा-सर्वार्थसिद्धि को मरवा डाला। राक्षस जब तपोवन में पहुँचा और सर्वार्थसिद्धि को मरा देखा तो अत्यन्त उदास हो कर वहीं रहने लगा । यद्यपि सर्वार्थ के मार डालने से चाणक्य की नन्दकुल के नाश की प्रतिक्षा पूरी हो चुकी थी, किन्तु उसने सोचा कि जब तक राक्षस चन्द्रगुप्त का मन्त्री न होगा तब तक राज्य स्थिर न होगा। वरंच बड़े विनय से तपोवन में राक्षस के पास मन्त्रित्व स्वीकार करने का सन्देशा मेजा परन्तु प्रभुभक्त राक्षस ने उसको स्वीकार नहीं किया।

तपोवन में कई दिन रह कर राक्षस ने यह सोचा कि जब तक पर्वतक को हम न फोड़ेंगे काम न चलेगा। यह सोच कर वह पर्वतक के राज्य में गया और वहाँ उसके बूढ़े मन्त्री से कहा कि चाणक्य बड़ा दगाबाज है, वह आधा राज कभी न देगा, आप राजा को लिखिए, वह मुझसे मिले तो मैं सब राज्य उनको दूं। मन्त्री ने पत्र द्वारा पर्वतक को यह सब वृत्त और राक्षस की नीति कुशलता लिख भेजी और यह भी लिखा कि मैं अत्यन्त वृद्ध हूँ, आगे से मन्त्री का काम राक्षस को दीजिये । पाटलिपुत्र विजय होने पर भी चाणक्क प्राधा राज्य देने में विलम्ब फरता है, यह देखकर सहज लोभी पर्वतक ने मन्त्री की बात मान ली और पत्र द्वारा राक्षस को गुप्त रीति