पृष्ठ:मुद्राराक्षस नाटक.djvu/३१

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मुद्रा-राक्षस

से अपना मुख्य अमात्य बनाकर इधर ऊपर के चित्त से चाणक्य से मिला रहा।

जीवसिद्धि के द्वारा चाणक्य ने राक्षस का सब हाल जान कर अत्यन्त सावधानता-पूर्वक चलना प्रारम्भ किया। अनेक भाषा जानने वाले बहुत से धूर्त पुरुषों को बेष बदल बदल कर भेद लेने के लिये चारों ओर नियुक्त किया। चन्द्रगुप्त को राक्षस का कोई गुप्तचर धोखे से किसी प्रकार की हानि न पहुँचावे इसका भी पक्का प्रबन्ध किया और पर्वतक की विश्वसघातकता का बदला लेने के दृढ़ संकल्प से, परन्तु अत्यन्त गुप्तरूप से, उपाय सोचने लगा।

राक्षस ने केवल पर्वतक की सहायता से राज के मिलने की आशा छोड़ कर कुलूत * मलय, काश्मीर, सिन्धु और पारस इन पाँच देशों के राजाओं से सहायता ली। जब इन पाँचों देश के राजाओं ने बड़े आदर से राक्षस को सहायता देना स्वीकार किया तो वह तपोवन के निकट फिर से लौट आया और वहाँ से चन्द्रगुप्त के मारने को एक विष कन्याश भेजी और अपना विश्वासपात्र समझ कर जीवसिद्धि को उसके साथ


  • कुलूत देश किलात बा कुल्लू देशं ।

¤विषकन्या शास्त्रों में दो प्रकार की लिखी है--एक तो थोड़े से ऐसे बुरे योग हैं कि उस लग्न मे उस प्रकार के ग्रहो के समय जो कन्या, उत्पन्न हो उसके साथ जिसको विवाह हो वा जो उसका साथ करे वह साथ ही बा शीघ्र ही मर जाता है ।-दूसरे प्रकार की विषकन्या वैद्यक रीति से बनाई जाती थी। छोटे पन से वरन गर्भ से कन्या को दूध में बी भोजन मे थोड़ा थोड़ विष देते देते बढ़ी होने पर उसका शरीर-ऐस'विषय हो जाता था कि जो उसका अङ्गसङ्ग-करता, वह मर जाता ।