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पूर्व-कथा


कर दिया। चाणक्य ने जीवसिद्धि द्वारा यह सब बात जान कर और पर्वतक की धूर्तता और विश्वासघातकता से कुढ़ कर प्रगट में इस उपहार को बड़ी प्रसन्नता से ग्रहण किया और लाने वाले को बहुत-सा पुरुष्कार देकर विदा किया। साँझ होने के पीछे धूर्ताधिराज चाणक्य ने इस कन्या को पर्वतक के पास भेज दिया और इन्द्रियलोलुप पर्वतक उसी रात को उस कन्या के संग से मर गया। इधर चाणक्य ने यह सोचा कि मलयकेतु यहाँ रहेगा तो उसको राज्य का हिस्सा देना पड़ेगा, इससे किसी तरह इसको यहाँ से भगावें तो काम चले। इस कार्य के हेतु भागुरायण नामक एक प्रतिष्ठित विश्वासपात्र पुरुष को मलयकेतु के पास सिखा पढ़ा कर भेज दिया। उसने पिछली रात को मलयकेतु से जाकर उसका बड़ा हितैषी बन कर उससे कहा कि आज चाणक्य ने विश्वासघात करके आपके पिता को विष- कन्या के प्रयोग से मार डाला और औसर पाकर आपको भी मार डालेगा।'मलयकेतु बेचारा इस बात के सुनते ही सन्न हो गया और पिता के शयनागार में जाकर देखा तो पर्वतक को, बिछौने पर मरा हुआ पाया। इस भयानक-दृश्य के देखते ही मलयकेतु के प्राण सूख गये और भागुरायण की सलाह से उस रात को छिप कर वहाँ से भाग कर अपने राज्य की ओर चला गया। इधर चाणक्य के सिखाये भद्रभट इत्यादि चन्द्रगुप्त के कई बड़े बड़े अधिकारी प्रगट में राजद्रोही बन कर मलयकेतु और भागुरायण के साथ ही भाग गये।

राक्षस ने मलयकेतु से पर्वतक के मारे जाने का समाचार सुनकर अत्यन्त सोच किया और बड़े आग्रह और सावधानी से पन्द्रगुप्त और चाणक्य के अनिष्टसाधन में प्रवृत्त हुआ।

चाणक्य ने कुसुमपुर में दूसरे दिन यह प्रसिद्ध कर दिया