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मुद्रा-राक्षस

अनुग्रह किया है? या आप ही से आज अतिथि लोगों ने कृपा की है कि ऐसे धूम से रसोई चढ रही है?

नटी―आर्य्य! ब्राह्मणों को न्यौता दिया है।

सूत्र०―क्यों? किस निमित्त से?

नटी―चन्द्र ग्रहण लगने वाला है।

सूत्र०―कौन कहता है?

नटी―नगर के लोगों के मुँँह सुना है?

सूत्र―प्यारी! मैंने ज्योतिः शात्र के चौसठौं अङ्गों में बड़ा परिश्रम किया है। जो हो, रसोई तो होने दो पर आज तो ग्रहण है यह तो किसी ने तुझे धोखा ही दिया है क्योंकि―

चन्द्र बिम्ब पूरन भए क्रूर केतु हठ दाप।


१ होरा मुहूर्त ताजक जातक रमल इत्यादि।

२ अर्थात् ग्रहण का योग तो कदापि नहीं है। खैर रसोई हो।

३ केतु अर्थात् राक्षस मन्त्री। राक्षस मन्त्री ब्राह्मण था और केवल नाम उसका राक्षस था किन्तु गुण उसमें देवताओं के थे।

४ इस श्लोक का यथार्थ तात्पर्य जानने को काशी संस्कृत विद्यालय के अध्यक्ष जगद्विख्यात पण्डितवर बापूदेव शास्त्री को मैंने पत्र लिखा। क्योंकि टीकाकारों ने 'चन्द्रमा पूर्ण होने पर' यही अर्थ किया है और इस अर्थ से मेरा जी नहीं भरा। कारण यह कि पूर्ण चन्द्र में तो ग्रहण लगता ही है इसमें विशेष क्या हुआ। शास्त्री जी ने जो उत्तर दिया है वह यहाँ प्रकाशित होता है।

श्रीयुत वावू साहिब को बापूदेव का कोटिशः आशीर्वाद, आपने प्रश्न लिख भेजे उनका संक्षेप से उत्तर लिखता हूँ।