पृष्ठ:मुद्राराक्षस नाटक.djvu/४०

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प्रस्तावना २३, . (अहो चन्द्र पुग्न भए फिर से पढ़ता है), (नेपथ्य . में) हैं ! मेरे जीते चन्द्र को कौन बल से ग्रस सकता है ?" सूत्र--(सुन कर ) जान।। अरे अहै कौटिल्य नटी-(डर नाट्य करती है ) नहीं जाता। विल्सन ने केतु शब्द से मलयकेतु का ग्रहण किया है। इसने भी एक प्रकार का अलंकर अच्छा रहता है। चमकृत, बुद्धिसम्पन्न पण्डित सुधाकर जी ने इस विषय में जो . लिखा है, वह विचित्र हो है। वह भी प्रकाश किया जाता है करत अधिक अधियार वह, मिल मिल करि हरिचन्द । द्विजराजहु विकसित करत, धनि धनि यह हरिचन्द ।। -श्री बाबू साहब को हमारे अनेक बार्शीवाद, महाशय! चन्द्रग्रहण का सम्भव भूछायां के कारण प्रति पूर्णिमा के अन्त में होता है और उस समय में केतु और सूर्य साथ रहते हैं पन्तु केतु और सूर्य का योग यदि नियत संख्या के अर्थात् पाँच राशि सोरह अंश से लेकर छः राशि चौदह अश के वा ग्यारह राशि सोरह अंश से लेकर बारह राशि चे दह अरा के भीतर होता है तब ग्रहण होता है और यदि योग नियत संख्या के बाहर पड़ जाता है तब ग्रहण नहीं होता है इस- लिये सूर्य केतु के योग ही के कारण से प्रत्येक पूर्णिमा मे ग्रहण नहीं होता। तब करग्रहः म केतुश्रन्द्रमसं पूर्णभण्डत्वमिदानीम् । अभिभवतुमिच्छति बलादक्षत्यनं तु बुधेयोगः ।। इस श्लोक को यथार्थ अर्थ यह है कि करमह सूय केतु के साथ चन्द्रमा के पूर्णमण्डल को न्यून करने की इच्छा करता है परन्तु हे बुध !