पृष्ठ:मुद्राराक्षस नाटक.djvu/४२

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. . प्रथम अंक स्थान-चाणक्य का घर (अपनी खुली शिखा को हाथ से फटकारता हुआ चाणक्य आता है) राणक्य-बता! कौन है जो मेरे जीते चन्द्रगुप्त को बल से असना चाहता है सदा दन्ति ? के कुम्भ को जो बिदारै ।। ललाई नए चन्द सी. जौन धारै ।। 'जंभाई ससै काल सो जौन -बाढ़े। भलो सिंह को दॉत सो कौन काहे ॥६॥ और भी कालसर्पिणी नन्दकुल, क्रोध धूम सी जौन-। अबहूँ बॉधन देत नहिं, अहो सिखा मम कौन ॥१०॥ दहन नन्दकुल बन सहज, अति प्रज्वलित प्रताप । को मम क्रोधानल पतँग, भयो चहत अब पाप ॥११॥ 'शारगरव! शारगरव !! शिष्य श्राता है, शिष्य-गुरू जी ! क्या आज्ञा है ? चाणक्य - बेटा! मै बैठना चाहता हूँ। शिष्य-महाराज- इस दालान मे चेत की चटाई पहिले ही से बिछी है, आप बिराजिये।

  • हाथों 1 + मस्तक