पृष्ठ:मुद्राराक्षस नाटक.djvu/४६

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प्रथम प्रक २६, मैने पहिले. ही योगो बना कर नन्दवध की प्रतिज्ञा के अनन्तर ही कुसुमपुर में भेज दिया है, वह वहाँ नन्द के मन्त्रियों से मित्रता, विशेष करके राक्षस का अपने पर बड़ा विश्वास बढ़ा -- कर सब काम सिद्ध करेगा, इससे मेरा सब काम. बन गया है, परन्तु चन्द्रगुप्त सब राज्य का भार मेरे ही ऊपर रख कर सुख करता है ! सच है, जो अपने बल बिना और अनेक दुःखों के भोगे बिना राज्य मिलता है वही सुख देता है। क्योंकिः अपने बल सों लावही, यद्यपि मारि शिकार ।. तदपि सुखी नहिं होत हैं, राजा सिंह कुमार ॥१७॥ (श्यम का चित्र हाथ में लिये योगी का वेष धारण किये दूत श्रोता है) दूत-अरे, और देव को काम नहि, जम को करो प्रनाम । जो दूजन के भक्त को, प्रान हरत परिनाम ॥१८॥ और उलटे तेहूँ बमत है, काज किये प्रति हेत। जो, जम जी सब को हरत, सोइ जीविका देत॥१॥ तो इस घर में चल कर जमघट दिखा कर गावें। (घूमता है )- शिष्य-रावलजी! क्योढ़ो के भीतर न जाना। दूत-अरे आक्षण ! यह किस का घर है ? शिष्य हम लोगों के परम प्रसिद्ध गुरु चाणक्यजी का। । दूत-(हंस कर) अरे प्राक्षण! तब तो यह मेरे गुरु भाई ही का घर है, मुझे भीतर जाने दे, मैं उसको धर्मोपदेश करू'गा।

  • उस काल में एक चाल के फकीर जम का चित्र दिखला कर

संसार की अनित्यता के गीत गाकर भीख मांगते थे । le