पृष्ठ:मुद्राराक्षस नाटक.djvu/४९

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३२- मुद्रा राक्षस -क्योंकि उसने राक्षस मन्त्री के कहने से देव पर्वतेश्वर पर विषकन्या का प्रयोग किया। चाणक्य-(आप ही आप ) जीवसिद्धि तो हमारा गुप्त दूत है। (प्रकाश) हाँ और कौन है। दूत-महाराज ! दूसरा राक्षस मंत्री का प्यारा सखा-शकटदास कायस्थ है। घाणक्य-(हंस कर आप ही ओप) कायस्थ कोई बड़ी बात नहीं है तो भी क्षुद्र शत्रु की भी उपेक्षा नहीं करना चाहिए, इसी हेतु ता मैंने सिद्धार्थक्क को उसका मित्र बनाकर उसके पास रक्खा है, (प्रकाश ) हॉ, तीसरा कौन है । - दूत-( हंस कर ) तीसरा तो राक्षस मंत्रो का मानों हृदय ही पुष्पपुरवासी चंदनदास नामक वह बड़ा जौहरी है जिस . के घर में मंत्री राक्षस अपना कुटुम्ब छोड़ गया है । चाणक्य-(आप ही श्राप ) अरे यह उसका बड़ा अंतरंग मित्र होगा क्योंकि पूरे विश्वास बिना राक्षस अपना कुटुम्ब यों न छोड़ जाता (प्रकाश) भला तुने यह कैसे जाना कि राक्षस मंत्री वहाँ अपना कुटुम्ब छोड़ गया ? दूत -महाराज ! इस “मोहर" की अंगूठी से आप को विश्वास होगा (अंगूठी देता है)। चाणक्य- अँगूठी लेकर और उसमे राक्षस का नाम बच कर प्रसन्न हो कर आप ही आप) श्राह ! मै समझता हूँ कि राक्षस ही मेरे हाथ लगा (प्रकाश) भला तुमने यह अंगूठी कैसे पाई ? मुझसे सब वृत्तान्त तो कहो। दूत-सुनिये । जब मुझे आपने नगर के लोगों का भेद लेने भेजा तब मैंने यह सोचा कि बिना भेस बदले में दूसरे के 1