पृष्ठ:मुद्राराक्षस नाटक.djvu/६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( ५ )

चन्दगुप्त ने ब्राह्मणों को दान में दिये। वे आभूषण राक्षस के पास विकने आये और उसने खरीद लिये। कुसुमपुर में चन्द्रगुप्त ने चाणक्य से बनावटी कलह करली और मंत्री का अधिकार चाणक्य से छीन लिया। इस समाचार से राक्षस को प्रसन्नता हुई, मलयकेतु राक्षस से मिलने गया था, उसने राक्षस की प्रसन्नता देखी। भागुरायण ने बताया कि राक्षस का चाणक्य से द्वेष है, चन्द्रगुप्त से नहीं। एक बीज संदेह का मलयकेतु के मन में बैठ गया। मलयकेतु ने राक्षस फो कुसुमपुर पर चढ़ाई करने में विलम्ब न करने का आदेश दिया।

कुसुमपुर पर चढ़ाई हो गयी। सेना-शिविर के याहर कोई व्यक्ति बिना भागुरायण से आज्ञापत्र लिये नहीं जा सकता था। जीवसिद्ध इसी समय भागुरायण से आज्ञापत्र लेने पहुँचता है। वह भागुरायण को बताता है कि उसने राक्षस के कहने से विषकन्या का प्रयोग पर्वतक पर किया। इसे मलयकेतु भी सुन लेता है। उसे राक्षस पर संदेह और भी बढ़ जाता है। भागु- रायण उस संदेह का कुछ निराकरण करने का प्रयत्न करता है तभी सिद्धार्थक बन्दी बनाकर लाया जाता है। उसके पास पत्र और पेटी निकलती है। मौखिक सिद्धार्थक बताता है कि राक्षस ने चन्द्रगुप्त के पास यह संदेश भिजवाया है कि उसके साथी राजा कौन कौन क्या क्या चाहते हैं । मलयकेतु भड़क उठता है। पेटी में अपने भेजे हुए आभूषणों को देख कर उसका क्रोध और तीव्र होता है। वह राक्षस को बुलाता है। व्यूह रचना का प्रबंध उससे पूछता है। राक्षस उन राजाओ के नाम बताता है जो मलयकेतु के चारों ओर रहेगे। अब मलयकेतु को निश्चय हो जाता है कि राक्षस ने इन राजाओं को मेरे चारों ओर मेरे विनाश के लिए ही लगा दिया है। वह उन राजाओं को मार डालने का आदेश भेज देता है। राक्षस को पृथक कर देता है।