पृष्ठ:मुद्राराक्षस नाटक.djvu/७

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इस अवसर का लाभ उठाकर भद्रभटादि चाणक्य के संकेत से मलयकेतु के दिखावटी मित्र मलयकेतु को बन्दी बना लेते हैं। चन्दनदास से मिलने कुसुमपुर की ओर दुखी हृदय से चलता क्षसरा है । मार्ग में एक पुरुष आत्मघात के लिए सन्नद्ध मिलता है वह इसलिए मरना चाहता है कि जिष्णुदास उसका मित्र अग्निप्रवेश कर रहा है। जिष्णुदास इसलिए अग्निप्रवेश कर रहा है कि चन्दनदास शूली पर चढ़ाया जायगा। चन्दनदास जिष्णुदास का अभिन्न मित्र है । अब राक्षस के लिए केवल एक मार्ग है कि वह चन्दनदास को छुड़ा ये। तलवार के प्रयोग से वह चन्दनदास को छुड़ा नहीं सकता क्यों कि उस पुरुष से सूचना मिलती है कि जब से शकटदास छुड़ाया गया है वधिक यदि किसी को तलवार लिये आते देखते हैं तो वध्य का तुरन्त वध कर देते हैं। अतः राक्षस बिना तलवार निकाले ही श्मशान में पहुँचता है और अपना समर्पण कर देता है। चाणक्य की नीति के आग्रह से राक्षस को चन्दगुप्त का मंत्रित्व स्वीकार करना पड़ता है मलयकेतु मुक्त कर दिया जाता है। नाटक समाप्त हो जाता है।

कथा-वस्तु का निर्वाह-नाटक में कथा-वस्तु का बहुत सुन्दर निर्वाह हुआ है। आधिकारिक और प्रासांगिक वस्तुऐं कुशलता पूर्वक गूॅथी गयी हैं। नाटक में स्त्री पात्रों का नितान्त अभाव है। शृगार रस किंचित भी नहीं। वीररस ही प्रधान है। नाटक की वस्तु ऐसे क्रम से अग्रसर है कि उत्कण्ठा बढ़ती जाती है और नाटक कहीं भी अरुचिकर अथवा शिथिल नहीं हो पाता।

नाटक के निर्माण के लिए जो पंच संधियाँ, पाँच कार्य- वस्थायें; पाँच अर्थप्रकृतियां नाट्यशास्त्रों में निर्धारित की गयी है, उनका भी उपयोग अच्छी प्रकार हुआ है।