पृष्ठ:मुद्राराक्षस नाटक.djvu/७१

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मुद्रा-राक्षस

ने प्रथम द्वार तो पहिले ही सोने की तोरनों से शोभित कर रक्खा है, भीतर के द्वारों को हम लोग ठीक करते हैं।" यह सुन कर चाणक्य ने कहा कि बिना कहे ही दारुवर्म ने बड़ा काम किया इससे उसको चतुराई का पारितोषिक शीघ्र ही मिलेगा।

राक्षस---(आश्चर्य से) चाणक्य प्रसन्न हो यह कैसी बात है? इससे दारुवर्म का यत्न या तो उलटा हो या निष्फल होगा, क्योंकि इसने बुद्धिमोह से या राजभक्ति से बिना समय ही चाणक्य के जी में अनेक सन्देह और विकल्प उत्पन्न कराया। हाँ फिर?

विराधगुप्त---फिर उस दुष्ट चाणक्य ने बुला कर सब को सहेज दिया कि आज आधी रात को प्रवेश होगा,और उसी समय पर्वतेश्वर के भाई वैरोधक और चन्द्रगुप्त को एक आसन पर बिठा कर पृथ्वी का आधा आधा भाग कर दिया।

राक्षस---क्यों पर्वतेश्वर के भाई वैरोधक को आधा राज मिला, यह पहिले ही उसने सुना दिया?

विराधगुप्त---हो, तो इससे क्या हुआ?

राक्षस---(आप ही आप) निश्चय यह ब्राह्मण बड़ा धूर्त है, कि इसने उस सीधे तपस्वी से इधर उधर की चार बातें बनाकर पवतेश्वर के मारने के शयपत्र निवारण के हेतु यह उपाय सोचा। (प्रकाश) अच्छा कहो---तब?

विराधगुप्त---तब यह तो उसने पहिले ही प्रकाशित कर दिया था कि आज रातको गृहप्रवेश होगा, फिर उसने वैरोधक को अभिषेक कराया और बड़े-बड़े बहुमूल्य स्वच्छ