पृष्ठ:मुद्राराक्षस नाटक.djvu/७३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५६
मुद्रा-राक्षस

राक्षस---हाय! दोनों बात कैसे दुःख की हुई चन्द्रगुप्त तो काल से बच गया और दोनों विचारे बर्बर और वैरोधक मारे गए, (आप ही आप) दैव ने इन दोनों को नहीं मारा हम लोगों को मारा!! (प्रकाश) और वह दारुवर्म बढ़ई क्या हुआ?

विगधगुप्त---उसको वैरोधक के साथ के मनुष्यों ने मार डाला।

राक्षस---हाय! बड़ा दुःख हुआ! हाय प्यारे दारुवर्म का हम लोगों से वियोग हो गया। अच्छा! उस वैद्य अभयदत्त ने क्या किया?

विराधगुप्त---महाराज! सब कुछ किया।

राक्षस---(हर्ष से) क्या चन्द्रगुप्त मारा गया?

विराधगुप्त---देव ने न मरने दिया।

राक्षस---(शोक से) तो क्या फूल कर कहते हो कि सब कुछ किया?

विराधगुप्त---उसने औषधि मे विष मिला कर चन्द्रगुप्त को दिया, पर चाणक्य ने उसको देख लिया और सोने के बरतन मे रखकर उसका रङ्ग पलटा जान कर चन्द्रगुप्त से कह दिया कि इस औषधि मे विष मिला है, इसको न पीना

राक्षस---अरे वह ब्राह्मण बड़ा ही दुष्ट है। हॉ, तो वह वैद्य क्या हुआ?

विराधगुप्त---उस वैद्य को वही औषधि पिला कर मार डाला।

राक्षस---(शोक से) हाय हाय! बड़ा गुणी मारा गया! भला शायनघर के प्रबन्ध करने वालेप्रमीदक ने क्या किया?

विराधगुप्त---उसने सब चौका लगाया।

राक्षस---(घबड़ा कर) क्यों?