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मुद्रा-राक्षस

राजा---तो फिर क्यों नहीं हुआ? क्या लोगों ने हमारी आज्ञा नहीं मानी।

कंचुकी---(कान पर हाथ रख कर) राम राम! भला नगर क्या इस पृथ्वी में ऐसा कौन है जो आपकी आज्ञा न माने?

राजा---तो फिर चन्द्रिकोत्सव क्यों नहीं हुआ? देख न---

गज रथ बाजि सजे नहीं, बँधी न बन्दनबार।
तने बितान न कहुँ नगर, रञ्जित कहूँ न द्वार॥
नर नारी डोलत न कहुँ, फूल माल गल डार।
नृत्य बाद धुनि गीत नहिं सुनियत स्रवन झँझार॥

कंचुकी---महाराज! ठीक है---ऐसा ही है।

राजा---क्यों ऐसा ही है?

कंचुकी---महाराज यों ही है।

राजा---स्पष्ट क्यों नहीं कहता?

कंचुकी---महाराज! चन्द्रिकोत्सव बन्द किया गया है।

राजा---(क्रोध से) किसने बन्द किया है?

कंचुकी---(हाथ जोड़ कर) महाराज! यह मैं नहीं कह सकता।

राजा---कहीं आर्य चाणक्य ने तो नहीं बन्द किया?

कंचुकी---महाराज! और किसको अपने प्राणों से शत्रुता करनी थी।

राजा---(अत्यन्त क्रोध से) अच्छा अब हम बैठेंगे।

कंचुकी---महाराज! यह सिंहासन है, विराजिए।

राजा---(बैठ कर क्रोध से) अच्छा कंचुकी! आर्य चाणक्य से कहो कि "महाराज आपको देखा चाहते हैं।"