स्ती रुपया वसुल करने का लगाया गया। इसका आधार यह था कि वे कमेटी की उस बैठक के सभापति बने थे जिसमें कई वस्त्र व्यवसायियों के पास, उन्हींकी संस्था द्वारा उन्हीं के बनाये हुए नियमों के अनुसार किये गये। जुरमाना अदा कराने के निमित्ति चिट्ठियां भेजने का निश्चय किया गया था। उन्हें २८ मास की सख्त केद की सजा दी गयी जिसे वे भुगत रहे हैं।
उपयुक्त मामलों का पूरा विवरण जानने के लिये परिशिष्ठ संख्या १३ में दिये गये भिन्न भिन्न अभियुक्तोंके कव्य देखिये।
ये वे प्रसिद्ध प्रसिद्ध मामले हैं जिनकी ओर जनता का ध्यान इस कारण आकृष्ट हुआ है कि उनसे विख्यात पुरुषों का सम्बन्ध था। किन्तु ऐसे अगणित मामले हुए हैं जिनमें असहयोगियों पर भूठ मूठ अभियोग लगाये गये हैं और थोड़े से थोड़े सबूत पर ही वे अपराधी प्रमाणित समझ गये है। इसमें सन्देह नहीं कि अपने मुकदमों में असहयोगियों के उदासीन भाव धारण करने के कारण ऐसा करना और भी सरल हो गया। यह जानकर कि वे लोग न तो अपनी पैरवी करते हैं और न गवाहों के साथ जिरह करते हैं अठी गवाही देनेवालों को प्रोत्साहन दिया जाने लगा है। इसका सबसे अच्छा उदाहरण इस जांच समिति के सदस्य पण्डित मोतीलाल नेहरू के मुकदमे में पाया जाता है। हिन्दी में किये गये उनके हस्ताक्षर को जो कि उन्होंने