पृष्ठ:यंग इण्डिया.djvu/१५८

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हो सका । नेताओंने अलग बैठ कर परामर्श किया पर किसी निर्णय पर नहीं पहुच सके । निदान इस प्रश्नको गया कांग्रेसके लिये टाल कर अधिवेश समाप्त किया गया।

गया कांग्रेस

गया कांग्रेसका अधिवेशन भी बड़े ही महत्वका था । कांग्रेसके भविष्यका निर्णय इसी कांग्रेसके हाथमें था । देशने अपनी कृतज्ञता प्रकाशित करनेके लिये देशबन्धु दासको फिर राष्ट्रपतिके पदके लिये चुना। दिसम्बरके चौथे सप्ताहमें कांग्रेसका अधिवेशन स्वराज्यपुरीमें बड़े उत्साहके साथ आरम्भ हुआ। कोनसके सामने दो प्रधान प्रश्न थे। ब्रिटिश वस्तुओंका वहिष्कार और कौंसिलोंका प्रश्न । खुली कांग्रेसमें पहला प्रश्न रखा गया। प्रतिनिधियोंने इस अस्वीकार किया। जागृतिका यह ज्वलन्त उदाहरण था । कांग्रेसके इतिहासमे यह प्रथम अवसर था कि विषय निर्धारिणी समितिमें बहु- मतसे निर्धारित विषयको प्रतिनिधि लोग इस तरह अस्वीकार कर दें। कौंसिलोंके प्रश्न पर कई दिनतक विषय निर्धारिणीमें विवाद होता रहा। अनेक सुधार उपस्थित किये गये। हर नरहसे सुलहकी चेष्टा की गई पर फल कुछ नहीं निकला। खुली कांग्रेसमें यह प्रश्न उपस्थित किया गया और जनताने अधिक सम्मतिसे कौंसिलोंके बहिष्कारका समर्थन किया । इस प्रकार गया कांग्रेसका अधिवेशन समाप्त हुआ और कांग्रेस अर्थात् असहयोगियों में दो दल हो गया।