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सत्याग्रह की मीमांसा


दशाका ज्ञान प्राप्त करनेमें हमलोगोंको सुविधा हो, हमलोग अपना मत स्थिर कर सकें।


उत्तर--मुझे सिर्फ इतना कहना है कि अहमदाबाद और विरामगांवको जनताने नितान्त अनुचित काम किया। उनका आचरण वड़ा बुरा था। किसी भी अवस्थामें उन्हें आपेसे बाहर हो जाना उचित नहीं था। इससे बढ़कर और कोई बात दुःखदायी नहीं हो सकती। साथ ही मुझे एक बात और कहनी है। सरकारकी कार्रवाई भी उचित नहीं थी। मुझे गिरफ्तारकर सरकारने अदूरदर्शितका काम किया। जिन लागोंमें मैं विख्यात हूं, सही या गलत, जो लोग मुझे श्रद्धा भक्तिसे देखते हैं सरकारने उनकी कड़ी परीक्षा लेनी चाही। उसे जग और समझदारीसे काम लेना रहा। स्थिर होकर घटनाको पूर्वापर अवस्था पर जरा और विचार कर लेना था पर इससे मेरा अभिप्राय यह नहीं है कि उसका दोष अक्षम्य है और उमके मुकाबिलेमें जनताका दोष कुछ नही है। बल्कि मेरा तो यह कहना है कि यदि किसी प्रकार सरकारका दोष क्षम्य हो सकता है तो जनताका आचरण सर्वथा अक्षम्य है।


इसके बाद महात्माजीने बतलाया कि मैंने अपनी शक्ति भर इस शोचनीय अवस्थाको सुधारनेका यत्न किया। मैने अपनेको पूरी तौरसे अधिकारियोंके हाथों में सौंप दिया। मि० प्रैट तथा अन्य प्रधान कर्मचारियोंके साथ मैंने सलाह मश- विरा किया। मेरी इच्छा थी कि १३ अप्रेलको मैं जनताकी