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सत्यगग्रहकी मीमांसा

मैंने सविनय अवज्ञा इसलिये बन्द किया कि मैंने देखा कि वर्तमान अवस्थामें यह सामूहिक रूपसे नहीं चलाया जा सकता । मुझे इस बातकी उतनी चिन्ता नहीं रहती कि लोग सत्याग्रहके व्रतकी आन्तरिक असीम शक्ति की मर्यादा को समझ लें जितनी इस बातको कि सत्याग्रहके व्रतमें दीक्षित न होते हुए भी उन्हें अहिंसासे दूर रहने की चेष्टा करनी चाहिये ।

प्रश्न---आपने अपने पत्रमें 'सत्याग्रह फिर कब जारी किया जायगा ?' शीर्षक लेखमें लिखा था कि जनताको सत्याग्रह के लिये तैयार हो जाना चाहिये क्योंकि तभी सांग्रामिक सेनाकी नियुक्तिका काम पूरा और चरितार्थ होगा। क्या इससे आपका यह मतलब नहीं था कि सैनिक सत्ता प्रत्येक नगरमें स्थापित कर दी जाय ताकि लोगोको कानून भंग करनेमें सुभीता हो।

उत्तर---मेरे शब्दों का जो अर्थ आप लगा रहे हैं वह कहीं से भी नहीं निकलता । मैं इतना भाषण पाप करनेका दोषी कभी भी नहीं होना चाहता । जैसा मैंने अनुमान किया था मैंने पहली जुलाईको सत्याग्रह नहीं जारी किया यद्यपि मेरे इस आचरण से मेरे अनेक साथी बडे ही असन्तुष्ट हुए । मेरे सत्याग्रह आन्दोलन न आरम्भ करनेका एकमात्र कारण यही था कि भारतके बड़े लाट तथा बम्बई के गवर्नरने मेरे पास लिखा था कि यदि आप सत्याग्रह आन्दोलन जारी कीजियेगा तो आपका यह देश केवल सैनिकों से भर दिया जायमा । इस बात को भलीभांति