कांग्रेसको स्कीम तथा इस तरह की अन्य स्कीमें अब केवल
हवाकी बाते नहीं रह गई। अभी हम लोगोंको प्रतीक्षा करनी
होगी। पञ्जाबमें महान अनर्थकारी दृश्य उपस्थित हो गया।
हजारों बेगुनाहोंकी जान चली गई। अत्याचारका राज्य
स्थापित हा गया । राजा और प्रजाका भेद और भा अधिक
बढ़ गया। इन सब बातोकी असलियत निकालकर स्थितिका
टीक पता लगाना कठिन है अर्थात् न्यायका पक्ष कितना प्रबल
है और उसके माथ कितने अत्याचार लगे हैं, अथवा न्यायका
अंश ही नहीं रहा है और हम लाग केवल अन्यायको लेकर काम
करनेके लिये प्रस्तुत है ।
क्या इस प्रकारकी निगशाके घार तमके बीचमे आशाकी
पतलो पर निर्मल किरण अवशिष्ट थी ? इसा समय ठी अप्रे-
लको सारे भारतको प्रकाशित करने के लिये सत्याग्रह सूयका
उदय हुआ। निराशाका मेघ इधर उधर तितर बितर हो गया
और बीचमेसे आशाकी उज्वल किरणे दिखाई देने लगीं। पर
उम ज्यातिप्रय सूर्यपर राहुकी क्रूर दृष्टि लगी हुई थी। पञ्जाब
ओर अहमदाबादमें उसने उसे ग्रम लिया और उसकी (गहुकी)
भाषण छाया आज भी हम लोगोंका पाछा कर रही है। पर तो
भी लोगोंके हृदयमे सत्याग्रह धीरे धीरे अपना दृढ़ आसन जमाता
चला जा रहा है। हड़ताल सर्वव्यापी थी। अधिकांश स्थानोंमें
पूर्ण शान्तिसे बीती । जिन्हें सत्याग्रहपर पूरा विश्वास था
उन्होंने उपवाल किया और प्रार्थना तथा अराधना आदिमें दिन