पृष्ठ:यंग इण्डिया.djvu/२३८

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बीती ताहि बिसारि दे, आगे की सुधि लेहु


इनका स्थायी सुधार तभी हो सकता है जब इनका आधार सत्याग्रह हो,नहीं तो इसकी कोई आशा नहीं है। आजतक ससार जिन उपायोका अबलम्बन करके इन बातोंकी प्राप्ति करता आया है उनसे सत्याग्रहका मार्ग एकदम भिन्न है। और उसके मार्गका पता लगा लेना महज काम नहीं है । उस मार्ग का अनुसरण करके चलनेका साहस अभीतक बिरला ही किसीने किया है। इसलिये ऐसा कोई उदाहरण भी इतिहासमे वर्तमान नहीं है जिसकी रेखा या पदचिहका अनुकरण करके लोग आगे बढ़ सकें। इसीसे लोग सत्याग्रहके नामसे डरते हैं। पर ऐसे लोगोंका अभाव नहीं है जो यह सब जानकर भी उसको स्वीकार करनेको तैयार हैं और उस मार्गपर अनवरत बढ़ रहे हैं यद्यपि उनकी गति अभीतक मन्द है ।

जिन लोगोंकी दृष्टिमें सत्याग्रहका अभिप्राय केवल शान्तिमय असहयोग है अर्थात् जो लोग शान्तिमय असहयोगको ही सत्याग्रहका सर्वेसर्वा मानते हैं उन्होंने सत्या. ग्रहका मर्म नहीं समझा है। यह निर्विवाद है कि सत्याग्रहकी सीमाके अन्तर्गत सविनय अवज्ञा आ जाती है पर यदि सत्याग्रह- की परिभाषा सब तरहसे बटोर कर का जाय । पर सविनय अव- शाको सफलता पूर्वक वही चरितार्थ कर सकता है जिसने कान- नकी मर्यादाको पालन करनेमें प्रवीणता प्राप्त कर ली है। कहा भो है कि किसी वस्तुको ढहानेका साहस उसीको करना चाहिये जो उस वस्तुका पुनः निर्माण कर सकता है। कवियोंने भी कहा है:---