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सत्याग्रह आन्दोलन


बने हुए हैं, मेरे मन में जरा भी द्वेष-भाव होता तो मुझे इतना साहस अवश्य है कि मैं इस संग्राम से अलग हो जाऊ। जिस मनुष्य के मन में ईश्वर के अथवा उसकी दयालुता अर्थात् न्यायपरायणता के प्रति जरा भी श्रद्धा है, वह मनुष्यों के प्रति द्वेष भाव रख ही नहीं सकता है, उनके कुकार्यों का तिरस्कार तो उसे अवश्य करना चाहिए । परन्तु वह मनुष्य खुद भी तो बुराइयों से बरी नहीं है । उसे हमेशा दूसरे की दया की आवश्यकता रहती है । अतएव उसे उन लोगों से द्वैष कभी न करना चाहिये जिनमें वह बुराई पाता हो । सो इस युद्ध का तो उद्देश ही यह है कि अंगरेजों के साथ. और सारे संसार के साश, भारत की मैत्री हो । यह हेतु झूठी खुशामद से सिद्ध नही हो सकता ; बल्कि तभी होगा जब हम भारतके अंगरेजों से साफ साफ कहेंगे कि भाइयो, आप कुमार्ग पर जा रहे हैं और जबतक आप उसे न छोड़ेंगे तब तक हम आपके साथ सहयोग नही कर सकते । यदि हमारा यह खयाल गलत हो तो ईश्वर हमें क्षमा कर देगा । क्योंकि हम उनका बुरा नहीं चाह रहे है और उसके लिये हम उनके हाथों कष्ट भोगने को भी प्रस्तुत है । यदि हम सचाई पर हैं, मेरा यह टिप्पणी लिखना जितना निश्चित है उनने ही निश्चय के साथ यदि हम सच्चे है, तो हमारे कष्ट-सहन से उनकी आंखें‌खुल जायंगी-ठीक उसी तरह जिस तरह कि इन अंगरेज महिलाओं' की खुल गई है। यह एक ही उदाहरण ऐसा नहीं है। सफर में अक्सर बीसों अंगरेज भाइयों से मेरी मुलाकात