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अंग्रेज रमणीय की आशीष


होती है । मैं उन्हें नहीं पहचानता; पर वे बड़े शौक से मुझसे हाथ मिलाते हैं, और मेरी सफलता चाहते हैं और चले जाते हैं । हां, यह सच है कि जहां बीसों अंगरेज मुझे आशीर्वाद करते हैं तहां सैकड़ों ऐसे भी हैं जो मुझे शाप देते हैं । इन शापो को भी हमारे यहां उसी के चरणों पर चढ़ा देने की आज्ञा दी गई है । इसका कारण है उनका अज्ञान । कितने ही अंगरेज भाई तथा कुछ हिन्दुस्तानी भी मुझे तथा मेरी हलचलों को दुष्ट और कुटिल समझते हैं । ऐसे लोगों के साथ भी असहयोगियों को सहिष्णुता धारण करना चाहिए । यदि उन्होंने क्रोध को और वैरभाव को अपनाया तो युद्ध में हारे ही समझिए ; पर यदि वे उन्हें सहन करते रहे तो उनकी जय निश्चित है, उसमें विलम्ब नहीं । मुझे निश्चय हो चुका है कि इस सारे विलम्ब का कारण है हमारे कर्तव्य पालन में त्रुटियां । हम हमेशा ही शान्तिमय नही बने रहे हैं। हमने, अपनी प्रतिज्ञा के खिलाफ, दुर्भाव को अपने हृदय मे स्थान दिया है । हमारे प्रतिपक्षी, अंगरेज शासकवर्ग, उनके साथ सहयोग करने वाले, ताल्लुकेदार तथा राजा लोग हम पर अश्विवास रखते आये हैं और हमसेभय खाते आये हैं । अपनी प्रतिक्षा. के अनुसार हम उनको हर तरहसे सुरक्षित रखनेके लिए वाध्य हैं। हां, हमें उनको दीन-दुर्बल लोगों की आर्थिक लूटमें तो किसी तरह सहायता न देना चाहिए परन्तु हमें उन्हें किसी तरह नुकसान भी न पहुंचाना चाहिए । यद्यपि उनकी संख्या बहुत ही कम है तथापि हमें अपने मध्यमें उन्हें संगीनोंकी सहायता की