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सत्याग्रह आन्दोलन
अधिक सुरक्षित कर देना चाहिए। यदि हमारी संख्या
मुट्ठीभर होती तो हमारी स्थिति अधिक आसान रही होती, बहुत
पहले ही हम अपने धर्मकी सच्चाई सिद्ध कर पाते। परन्तु हमारी
सख्या तो बहुत बढी चढ़ी है और इसीसे हम दिक हो जाते हैं।
वर्तमान राज्यसे तो हम दोनों असन्तुष्ट हैं, परन्तु अहिंसामें
दोनोंकी श्रद्धा एक सी दृढ़ नहीं है। हमें तबतक दम न
लेना चाहिए जबतक हम मदरासके जैसी शर्म दिलानेवाली
दुर्घटनायें असम्भव न कर दें। 'अहिंसा' का जप करते हुए हमें
अदालतोंकी कार्रवाईमे बाधा न डालनी चाहिए। या तो हम
जेलों का आवाहन ही करें या उससे मुत्लक दूर रहें। यदि हम
ऐसा चाहते हैं तो सरकार हमें जितनी जल्दी उठा ले जाना चाहे
उतनी जल्दी उसे उठा ले जाने देना चाहिए। जिस हदतक हम
अहिमाकी उलझनोंको न समझेगे उसी हदतक इस युद्धकी उन्न
बढ़ती जाती है।
प्रथम खण्ड समाप्त