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पंजाबकी दुर्घटना


हाथमें है। जिनपर देवताओंकी कृपा होती है वे ही सदार्गका अवलम्बन करते हैं। कुछ कालके लिये देवता लोग पंजाबको भूल गये। जब उन्हें इस भूमिका एक बार पुन स्मरण आया तो आकाश वाणी हुई कि, :-

उत्तिष्ठत, जाग्रत प्राप्य वरान् निवोधत

उठो, जागो और गुरुजनोंके चरणोंमें उपस्थित होकर ज्ञान प्राप्त करो।

पंजाबको जगानेवाला गुरु गुजरातमें था। उसने पंजाबको आंखसे कभी भी नहीं देखा था पर उसने पंजाबके लिये एक सन्देश रख छोड़ा था। इस सन्देशको बहुतोंने पढ़ा पर विर-लोंने ही इसके मर्मको समझा। परिणाम यह हुआ कि एक प्रकारकी उत्तेजना लोगोंमें दृष्टिगोचर होने लगी। पंजाब निवासियोंने उनकी प्रतिक्षापर हस्ताक्षर नहीं किया था । उन्होंने सत्याग्रहके मान्तरिक भावको नहीं समझा था। तोभी उसमेंसे स्वतन्त्रताकी जो ध्वनि निकल रही थी वह सारे पंजाबमें फेल गई और पंजाब जागृत हो उठा। पंजाबियोंमें एक नई शक्तिका संचार हुआ अर्थात् पीडा सहनेकी शक्ति और यही कारण था कि विना चूं किये ही लाहोरके निवासियोंने गोलियोंकी मारको छातियों पर बर्दाश्त किया। आज ही समाचार मिला है कि जिन २१ आदमियोंको सैनिक अदालतने भारी भारी दण्ड दिया था-जिसमें फांसी तकके दण्ड थे-उनकी अपीलको प्रिवी