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झूठ कि लापरवाही


समाचार पत्रों द्वारा अभी मिला है। आपने कहा है कि हण्टर कमेटीको यह अधिकार है कि वह सैनिक अदालत के फैसलों की पुनः निगरानी करा सकती है। यदि हण्टर कमेटी ऐसी शिफारिस कर सकती है तो इसके लिये यह आवश्यक है कि प्रधान-प्रधान कैदी नेता जमानतपर अवश्य छोड़ दिये जायं। परप्रांतीय सर.कारने किसी भी अवस्था में उन नेताओं को इजलास में आने से रोक दिया है। साथ ही जिन अफसरों की कार्रवाई की जांच हो रही है ये खुली तौर से अदालत में आते हैं और आवश्यक विषयोंपर सरकारी वकील की सहायता करते हैं। इसके साथ ही साथ सर शङ्कर नायरके पास भी एक तार भेजा गया था जिसमें लिखा था:-कांग्रेस सषकमेटी केवल इतना चाहती है कि "मार्शल लाके कैदी ६ प्रधान नेता केवल उस दिन के लिये स्वतन्त्र कर दिये जायं जिस दिन उनका बयान हो पर प्रत्येक नगरके प्रधान प्रधान कैदी नेता पुलिस की रक्षामें जांच कमेटी की कार्रवाई में कमसे कम उन दिनों में उपस्थित किये जायं जिस दिन उनके जिले के उपद्रव की जांच हो ताकि आवश्यकता पड़नेपर वे अपने वकीलों की सहायता करें जिससे वे सरकारी गवाहों के बयान की असलियत की पता लगा सके।" यह तार लण्डन के समाचार पत्रों में भी प्रकाशित हुआ था। तो क्या मिस्टर माण्टेगू ने असली बात को छिपाया ? पर यदि उन्होंने ऐसा नहीं किया---जैसा कि हमें विश्वास है कि वे नहीं कर सकते---तब यह समस्या किस 'प्रकार हल हो सकती है ! इस जटिल प्रश्नका पूर्ण उत्तर पंडित