पृष्ठ:यंग इण्डिया.djvu/२९९

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मुकाबिला।

(नवम्बर १९, १९१९)

सरकारने अपना अन्तिम निर्णय सुना दिया। उसकी समझमें कांग्रेस सबकमेटीकी प्रार्थनाको स्वीकार करके काफी जमा- नत लेकर भी चन्द दिनके लिये पञ्जाबके प्रधान प्रधान कैदियोंको छोड़ देना असम्भव था। यह मांग कमसे कम थी। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण तो यही है कि यदि ऐसा न होता तो पण्डित मालवीयजोके समान व्यक्ति इसके लिये इतना अधिक जोर न देते। इन नेताओंकी अस्थायी मुक्तिको नितान्त आवश्यकताके प्रश्नपर वादविवाद करना निष्प्रयोजन या सूर्यको दीपक दिखाना है। इसको आवश्यकता प्रत्येक व्यक्तिको उतनी ही स्पष्ट विदित होती होगी जितनी सूर्य के प्रकाशकी आवश्यकता । इस पातका हमें अत्यन्त खेद है कि प्रेस्टीज (मर्यादा) की गलतफहमीने सर-कारकी आंखोंपर इतनी मोदी पट्टी बांध दी थी कि उसको सच्ची अवस्थाका पतातक लगना कठिन हो गया, उसकी दृष्टितक सच्चा प्रकाश पहुचने ही नहीं पाया। पंडित मदनमोहन माल-वीयजीने लार्ड हण्टरको जो पत्र लिखा था उसमें उन्होंने सालमन कमेटीका पूरा हवाला दिया था। यह हवाला देना नितान्त उचित और आवश्यक था क्योंकि हण्टर कमेटीका यह कर्तव्य था कि